बैसाखी, एक पर्व ना होकर एक प्रतीक है, हमारे क्रषि प्रधान देश होने का
शौर्य, समर्पण और सम्मान का चलिये बैसाखी के बारे मे बारीकी से जानने की कोशिश करते हैं .........
बरसात के बाद खेतों को जोतना ,बीज बोना,भरी सर्दियों मे सीचना इतनी मशक्कत के बाद गेहू की फसल तैयार होती है ,किसान जब
पूरी मेहन के बाद खेतों मे गेहू की बालियों को लहलहाता हुवा देखता है वह पल उस के लिये त्योहार जैसा होता है ओर इसी त्योहार
को जो की नई उमंग ,नई खुशी का त्योहार है .......बैसाखी कहते है इस वर्ष यह 14 अप्रेल को मनाया जाना है,
पर्व खास कर पंजाब ओर हरियाणा मे बहुत जोर शोर से मनाया जाता है लोग आग के चारों ओर घेरा बना ढोल नगाड़ों
की थाप पर भांगड़ा ओर गिददा करते ओर गीत गाते है , इस पर्व पर फसलों ओर मौसम की बेहतर कामना के गीत गये जाते है, इस
दौरान जगह जगह बैसाखी के मेले लगते है ,बैसाखी एक लोक पर्व है जिसे सभी सम्प्रदाय के लोग मिलकर मनाते है यह पर्व सर्दियों के खत्म होने ओर गर्मी की शुरुवात का सूचक है शाखों पर नई कोपल आने व खेतों मे गेहूं की बालियो के लहलहाने का !
बैसाखी लोक पर्व होने के साथ साथ इस का अध्यात्मिक महत्व भी है बैसाखी शौर्य ओर बलिदान का पर्व भी है ! सिखों के दसवें
गुरु श्री गुरु गोबिन्द साहेब जी ने इसी दिन साल 1699 मे आनन्दपुर साहेब मे खालसा पंथ की नीव रखी, खालसा का अर्थ शुद्ध,पावन,
या पवित्र है , खालसा पंथ की स्थापना के पीछे गुरु का मुख्य लक्ष्य लोगों को धार्मिक नैतिक व व्यवहारिक जीवन से जोड़ना था !
इस दिन गुरुद्वारों मे विशिष्ठ आयोजन किये जाते है सुबह से कीर्तन होता है जो अंत मे समस्त उपस्थित जन समूह को पूरी श्रद्धा से लंगर .कराने के साथ समाप्त होता है
..............समस्त मित्रों को मेरी ओर से बैसखी बहुत सारी बधाई .............................